* दिन में सब आफ़ताब कहते हैं *
ग़ज़ल
दिन में सब आफ़ताब कहते हैं
रात में माहताब कहते हैं
इन्तेहा यह शबाब की उसके
फूल उसको गुलाब कहते हैं
लौग उसकी महकती ज़ुल्फ़ों को
बादलों का जवाब कहते हैं
उसकी ख़न्दा-लबी को दीवाने
इक महकती शराब कहते हैं
हम ने उन से बिछड़ के पायीं जो
धड़कनों को अज़ाब कहते हैं
उसकी सूरत को हम मुहब्बत के
फ़िल-सफ़े की किताब कहते हैं
वह मेरे दिल को करके घर अपना
अपने घर को ख़राब कहते हैं
हम भी कर लेंगे घर किसी दिल में
अपने दिल से यह ख़्वाब कहते है
हम भी पीते हैं बेख़ुदी में हया॔त
हम भी अश्कों को आब कहते हैं
जावेद हयात
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