* कोई ख़न्जर है उन आँखों में नज़र से *
कोई ख़न्जर है उन आँखों में नज़र से पहले
जो मरे दिल में उतरता है जिगर से पहले
मैं सनम अपनी नज़र कैसे बचाता तुझ से
राह में घर है तेरा भी मेरे घर से पहले
ताब नज़रों की तेरी अब मैं उठा लेता हूँ
दिल को अब दिल से मिला अपनी नज़र से पहले
होश गुम हों तो कहाँ मुझ से तकल्लुफ़ होगा
मुझ को आँखों से पिला देना ज़हर से पहले
ज़ख़्म देता है मुहब्बत का नया पौदा भी
ख़ार ही इसमें निकलते हैं शजर से पहले
ऐ हवा घर के चिराग़ों को अभी से न बुझा
अश्क पीने हैं अभी मुझ को सहर से पहले
दूर मन्ज़िल मेरी पहले भी न थी मुझ से हयात
रासता भूल गया था मैं सफ़र से पहले
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