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* यह ख़याल मुझ को आया, कई बार बे ख़ुदी & *
यह ख़याल मुझ को आया, कई बार बे ख़ुदी में
के किरन सुबह की आये, कभी शाम ए ज़िन्दगी में
ऐ सनम न मुझपे इतनीं, यह नियाज़मन्दियाँ कर
मैं तड़प के मर न जाऊँ, कहीं तेरी दिल्लगी में
मैं तमाम दिन भटकता, रहा जिसकी जुस्तुजू में
वह सुकून-ए-दिल मिला है, मुझे शब की बे कली में
मैं कभी न मसकुराता, जो मझे यह इल्म होता
के हज़ार ग़म निहाँ हैं, मेरे दिल, की इक ख़ुशी में
कभी हम ने तेरे ग़म को, कभी ग़म ने तेरे हम को
दिया है फ़रेब यूँ भी, के डुबोया मयकशी में
न तो प्यार बेग़रज़ है, न ख़ुलूस बे सब॔ब है
है कोई तो राज़ पिनहाँ, यहाँ आज दोसती में
लिखीं बेशुमार गज़लें, मेरे दिल को जो लुभाती
वह हया॔त मिल न पाई, मुझे मेरी शायरी में
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