* किसी की राह पे चलना.........हमारी राह नही *
किसी की राह पे चलना.........हमारी राह नहीं
हमारे अज़्म से बढ़कर...........हमारी चाह नहीं
रुख़ ए गुलाब की जैसी........जबीन ए माह नहीं
तुम्हारे इश्क़ से आगे.............मेरी निगाह नहीं
है मेरा ज़र्फ़ कि मेरी.............ज़ुबाँ पे आह नहीं
यह न समझ कि अभी तक यह दिल तबाह नहीं
न इख़्तियार मुझे नींद पे...............न आँखों पे
किसी जगह भी मेरे ख़ुवाब........की पनाह नहीं
तमाम उम्र ग़म ए इश्क़.......... से उलझते क्यों
यह होता इल्म अगर इसकी ......कोई थाह नहीं
तभी से दर्द की शम्मा...............जलाए बैठे हैं
सुना है जब से ग़म ए इश्क़.......भी गुनाह नहीं
मैं ख़ुद तराश के अपने...........सनम बनाता हूँ
किसी के हुस्न पे माइल..........मेरी निगाह नहीं
हया॔त मेरे बुज़ुर्गों की..............यह विरासत है
किसी की बख़्शी हुई यह........हमारी जाह नहीं
जावेद हया॔त — |