* बारहा ख़ुद हम ने अपने आप को धोका दि *
बारहा ख़ुद हम ने अपने आप को धोका दिया
दर्द को पानी समझ कर आँख से छलका दिया
इक जुनूँ सर गर्म है जो रूह के अतराफ़ में
ज़ख़्मे दिल महका के उसने दर्द को भटका दिया
आग कोई इश्क़ के जैसी नहीं होती अजीब
हम बुझा पाए तुमने जिसे भड़का दिया
इश्क़ में दिल को ख़ुदा माना मजाज़ी ही सही
सब तमन्नाओं को दिल की इस तरह बहला दिया
क्या अजब चारा गरी के पुरसिशे-ग़म भी करे
दिल को मेरे दर्द भी जिसने बड़ा गहरा दिया
है मुहब्बत और नफ़रत का ज़ख़ीरा मुझ में भी
जिसने जो तोहफ़ा दिया उसको वही बदला दिया
इश्क़ में जलना मुक़द्दर जिसका है आगे बढ़े
उसने कूचे की हर इक दीवार पर लिखवा दिया
बज़्मे जानाँ में सभी तो ग़म के मारे थे हया॔त
जिसने हमसे पुरसिशे-ग़म की उसे लौटा दिया
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