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Kaifi Azmi
 
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* ये जीत-हार तो इस दौर का मुक्द्दर है *
ये जीत-हार तो इस दौर का मुक्द्दर है
ये दौर जो के पुराना नही नया भी नहीं
ये दौर जो सज़ा भी नही जज़ा भी नहीं
ये दौर जिसका बा-जहिर कोइ खुदा भी नहीं

तुम्हारी जीत अहम है ना मेरी हार अहम
के इब्तिदा भी नहीं है ये इन्तेहा भी नहीं
शुरु मारका-ए-जान अभी हुआ भी नहीं
शुरु तो ये हंगाम-ए-फ़ैसला भी नहीं

पयाम ज़ेर-ए-लब अब तक है सूर-ए-इसराफ़ील
सुना किसी ने किसी ने अभी सुना भी नहीं
किया किसी ने किसी ने यकीं किया भी नहीं
उठा जमीं से कोई, कोई उठा भी नहीं
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