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Kazim Jarwali
 
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* याद आती है !!! *
याद आती है !!!
बांस की खाट पर बैठी हुई,
टेढ़े सींगो वाली पागुर करती काली बकरी ।।
याद आती है !!!

कच्ची दीवार की ओट से ।
चाँद के चेहरे पर बादल सी मैली ओढ़नी,
पुरानी चाँदी के मैले कंगन की ।।
याद आती है !!!

चमचमाते हुये पीतल के बर्तनो की ।
रामदास और दीन मोहम्मद के आँगन की,
दही, राब और लेमू की पत्ती से बने शरबत की ।।
याद आती है !!!


तुम किया सोच रहे हो ?
तुम तो पांच सितारा होटल मै हो !
मै किया जवाब दूँ ???

इन मै से कोई सितारा मेरे काम का नहीं ।
जो मेरे थे,
मेरी पलकों मे बसे हुए हैं ।।
कुछ मेरे गाँव की मिटटी मे रचे बसे हुएं हैं ।।।     --”काज़िम” जरवली
 
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