जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये , सूरज का उजाला कभी शब् तक नही पहुंचा । जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया , हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।। ******