* ज़माना बेसबब अब तेरे मेरे दर्मिया *
ज़माना बेसबब अब तेरे मेरे दर्मियाँ कियूं हो
हमारे राज़े पोशीदा का कोई राज़दां कियूं हो
क़फ़स में सोचताहूं अब यही शाम ओ सहर अक्सर
'गिरी है जिस प् कल बिजली हमारा आशियाँ कियूं हो "
किसी का दिल दुखा देंना कभी सीखा नहीं मैं ने
नमक पाशी करे ज़ख्मों प् जो मेरी ज़बां कियूं हो
नहीं सुनता है जब ज़ालिम तू अर्ज़े मुददआ मेरा
जबीं मेरी बता तेरी रहीने आस्तां कियूं हो
रक़ीबों को नहीं जब आजमाता है तो आखिर फिर
हज़ारों बार महफ़िल में मिरा ही इम्तिहाँ कियूं हो
ज़माना जानता है खूब मेरी वजहे बेताबी
भला फिर सोज़िशे दर्दे जिगर तुझ से निहां कियूं हो
मैं इस में अजम ओ हिम्मत के हज़ारों रंग भरता हूं
मिरे एहसास का पैकर नहीफ ओ नातवां कियूं हो
किया है तू ने जब मसऊद उन से इश्क का सौदा
तो फिर अंदेशा हाए मर्ग और सूद ओ ज़ियाँ कियूं हो
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