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Mehr Lal Soni Zia Fatehabadi
 
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* हसरत ए दीद मुसीबत ही सही । *
हसरत ए दीद मुसीबत ही सही ।
हमें ग़म खाने की आदत ही सही ।

दश्त-ओ सहरा कोई दोज़ख तो नहीं,
तेरा कूचा मेरी जन्नत ही सही ।

बेअसर मेरी दुआएँ क्यूँ हों,
लादवा दर्द-ए मुहब्बत ही सही ।

ज़िन्दगी मौत से बेहतर है मगर,
दो घड़ी के लिए राहत ही सही ।

अमन से बैर नहीं रखते हम,
शोरिशें दाख़िल-ए फ़ितरत ही सही ।

सर कटाने की मगर बात कहाँ,
सर में सौदा-ए शहादत ही सही ।

देख कर इश्क ’ज़िया’ बढ़ता है,
हुस्न तस्वीर-ए नज़ाकत ही सही ।
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