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Mehr Lal Soni Zia Fatehabadi
 
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* रात कहती थी दिल से आँसू पी | *
रात कहती थी दिल से आँसू पी |
यूँ ही उम्मीद में सहर के जी |

जगमगाए चिराग़ ज़ररों के 
पड़ गई माँद शमें तारों की |

गुल ए नरगिस है महव ए आईना 
वाह रे आलम ए दुरूँबीनी |

वो तो मैं ही था बारहा जिस ने 
ज़िन्दा रहने को ख़ुदकुशी कर ली |

किसे अहसास था असीरी का 
बन्द खिड़की अगर नहीं खुलती |

जल बुझा जो पतँगा उस की ख़बर
आग की तरह शहर में फैली |

शेअर कहते रहो " ज़िया " साहिब 
ख़िदमत ए उर्दू और क्या होगी |
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