बिजली इक कौंद गयी आँखों के आगे तो क्या, बात करते कि मैं लब तश्नए-तक़रीर भी था । पकड़े जाते हैं फरिश्तों के लिखे पर नाहक़, आदमी कोई हमारा, दमे-तहरीर भी था ? ****