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Mirza Ghalib
 
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* आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक *
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक!

दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग 
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक!

आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक!

हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!

परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम 
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक!

यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल 
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर होने तक!

गम-ए-हस्ती का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक! 
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