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Munawwar Rana
 
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* मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए  *
मुहाजिर हैं मगर एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

हँसी आती है अपनी अदाकारी पे खुद हमको
कि बने फिरते हैं यूसुफ़ और ज़ुलेख़ा छोड़ आए हैं

जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती थी 
वहीं हसरत* के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं 
[Hasrat Mohani, the legendary poet and freedom fighter]

वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है
कि हम उजलत में जमना का किनारा छोड़ आए हैं
[wazu=ablutions before namaz,]
उतार आए मुरव्वत और रवादारी का हर चोला 
जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं 

ख़याल आता है अक्सर धूप में बाहर निकलते ही 
हम अपने गाँव में पीपल का साया छोड़ आए हैं 

ज़मीं-ए-नानक-ओ-चिश्ती, ज़बान-ए-ग़ालिब-ओ-तुलसी 
ये सब कुछ था पास अपने, ये सारा छोड़ आए हैं 

दुआ के फूल पंडित जी जहां तकसीम करते थे 
गली के मोड़ पे हम वो शिवाला छोड़ आए हैं 

बुरे लगते हैं शायद इसलिए ये सुरमई बादल 
किसी कि ज़ुल्फ़ को शानों पे बिखरा छोड़ आए हैं

अब अपनी जल्दबाजी पर बोहत अफ़सोस होता है 
कि एक खोली की खातिर राजवाड़ा छोड़ आए हैं  

मुनव्वर राना 

 
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