* कई दिन से आँखों में आंसू नहीं थे . *
कई दिन से आँखों में आंसू नहीं थे .
नसीर अहमद नासिर
यहाँ कोई नमदार आँखों से क्षण भर भी देखे
तो लगता है बारिश सी होने लगी है
कभी बादलों में समंदर हुमकने लगा है
मुझे तुम बताओ .
कि चुपचाप जीवन की हर सिम्त से बहते हुए पानियों को
कहाँ तक छुपाऊंगा मैं
अनकही दास्ताने कहांतक सुनाऊंगा मैं
जिंदगी के ज़मीं-दोज रस्तों पर कबतक चलूँगा
अनंतकाल सपनों को देखूंगा कबतक
तुम्हारी घनी सब्ज़ अनदेखी बगिया की छाओं में कबतक चलूँगा
तुम्हारी मुहब्बत के चेहरे पर आँखें नहीं हैं
ये सदियों पुराने अँधेरे के जर्जर मकानों के पीछे दरख्तों के नीचे
जहां हम ज़रा देर बातों के छींटे उड़ाते हुए आ गये हैं
यहाँ चंद साए हमारे लिए रोशनी ला रहे हैं
परिंदे हमारे लिए गा रहे है
ये लम्हे जो बूढ़े ज़मानों के बच्चे हैं
छुपकर हमें देखने आ गये हैं .
मगर तुम बताओ
कि उम्रें कहांतक हमारे लिए सांस लेती रहेंगी
किसी दिन कहेंगी
चलो अब बहुत जी लिया
ड्राइवर उठाओ ये सामान सारा
चलो पोर्टिको में गाड़ी खड़ी है
मुझे तुम बताओ मै शब्दों के कैपसूल खा खा के कबतक जीयुंगा
ये शब्दों का सीरप भी कबतक पियूँ
ये साँसों का सम्पूर्ण वस्त्र फट गया है .
ا इसे और कितना सिऊंगा
मुझे तुम बताओ ..
[ अनुवाद; शमोएल अहमद ]
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