* वो चाँद की तरह मेरी हस्ती पे छा गय& *
वो चाँद की तरह मेरी हस्ती पे छा गया
उल्फत की चांदनी से वो मुझ को नहा गया
था लाज़मी की इश्क मैं मिलती मुझे सहर
लेकिन मेरे नसीब में अँधेरा आ गया
तनहाइयों में हो गया सैराब खुद मगर
वो तिश्नगी की आग में मुझ को जला गया
में तो बंधी हूँ रेशमी धागे की डोर से
वरना वो मुझ से दूर तो कब का चला गया
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