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Shahid Kabir
 
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* आज हम बिछ्डे हैं तो कितने रंगीले ह *
आज हम बिछ्डे हैं तो कितने रंगीले हो गये
मेरी आंखें सुर्ख तेरे हाथ पीले हो गये

कबकी पत्थर हो चुकी थीं मुंतज़िर आंखें मगर 
छू के जब देखा तो मेरे हाथ गीले हो गये 

जाने क्या अहसास साज़े-हुस्न की तारों में था 
जिनको छूते ही मेरे नगमे रसीले हो गये

अब कोई उम्मीद है "शाहिद" न कोई आरज़ू
आसरे टूटे तो जीने के वसीले हो गये 

आज हम बिछ्डे हैं तो कितने रंगीले हो गये
मेरी आंखें सुर्ख तेरे हाथ पीले हो गये
 
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