* आफत-ए-इष्क है बचकर ना निकल पाओगे.... *
आफत-ए-इष्क है बचकर ना निकल पाओगे....
रोग ऐसा है दवा ढूंढते रह जाओगे....
मोहब्बत के रास्तों में उजाले नहीे होते....
बदहवासी की तीरगी में भटक जाओगे....
अष्क आंखों से बरसेंगे अंगारे बनकर....
गम-ए-तपिष मे बेवजह झुलस जाओगे....
महक रहा है दूर से जो गुलाबों की तरह....
कांटो भरा चमन है ज़ख्म खाओगे....
वही आसिम कहेगा एक दिन चाहोगे तुम जिसे ....
खुदा ना करे मगर जीते जी मर जाओगे....
सांसें तुम्हारी होंगी पर ज़ाबित कोर्इ होगा....
खुद पर भी इखितयार ना रख पाओगे....
नतीजा-ए-इष्क में उसके फटे डुपटटे से....
बनाके अपना क़फ़न ओढ़कर सो जाओगे....
बात अच्छी लगे कड़वी लगे कहने से मतलब राज....
खामोष रहे तो मुंह ख़ुदा को क्या दिखाओगे....
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