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* खोके पति सत्य की देवियाँ जल गईं। *
------------- ग़ज़ल -------------
खोके पति सत्य की देवियाँ जल गईं।
पाके पति क्यों कई लडकियाँ जल गईं।
घर मिरा जल गया इसका ग़म कुछ नहीं,
देखिये आपकी उँगलियाँ जल गईं।
शम्मा मैंने जलाई कभी बज़्म में, (मोम <- मधुमक्खी <- फूल)
देख बागों की सब तितलियाँ जल गईं।
तेरी आँखों की बिजली में वो सोज़ है,
असमानों की सब बिजलियाँ जल गईं।
आज सूरज की गर्मी से पर ही नहीं,
गिधनुमा जेह्न की पुतलियाँ जल गईं।
ज्यों ही पत्नी को मैंने लगाया गले,
सलहजें जल गईं सालियाँ जल गईं।
दिल है टुटा 'नया' जज़्बाए इश्क़ में,
होम करते हुए उँगलियाँ जल गईं।
--- वी.सी. राय 'नया'
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