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* फूल जैसे फूलदानों में फंसे। *
फूल जैसे फूलदानों में फंसे।
दर्द मेरे यूं तरानों में फंसे।
ज्ञान सारा धूल मिट्टी सा लगा,
बुद्धिजीवी जब किसानों में फंसे।
लक्ष्य अपना भेदने को मित्रवर,
तीर व्याकुल हैं कमानों में फंसे।
छोड़कर अब खेत और खलिहान को,
गांववाले कारखानों में फंसे।
इस धरा की याद आई तब बहुत,
लोग जब जलते विमानों में फंसे।
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