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* मेरे साथ जो भी उजाले गए, *
मेरे साथ जो भी उजाले गए,
चिरागों के घर से निकाले गए।
न उनकी खुशी मुझसे देखी गई,
न दुख मेरे उनसे संभाले गए।
खुशबू उनकी बचाकर रखी थी बहुत,
चंद झौंके हवा के उड़ा ले गए।
क्या नदी कोई रखेगी इसका हिसाब,
कितने घर इसके धारे बहा ले गए।
आंधियां भी उन्हीं को हैं करतीं नमन,
जो दिए अपनी लौ को बचा ले गए।
सबको मालूम है, जांच होगी मगर
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