donateplease
newsletter
newsletter
rishta online logo
rosemine
Bazme Adab
Google   Site  
Bookmark and Share 
design_poetry
Share on Facebook
 
shahid samar
 
Share to Aalmi Urdu Ghar
* ज़ख्म ताज़ा हरा हरा-सा है। *
ज़ख्म ताज़ा हरा हरा-सा है।
ये तजुर्बा नया नया-सा है।

वो जो घर है मेरे पिता जैसा,
और वो पेड़ भी दुआ-सा है।

शर्त थी सूर्य बांटने की यहाँ,
क्या हुआ हर तरफ कुहासा है।

कल जो निकला था बदलने तस्वीर,
आज कितना थका थका-सा है।

कल तलक जो अमन की बस्ती थी,
क्या हुआ हर तरफ धुआं-सा है 
---
उसने खुशबू की ज़ुबानी लिख दी,
फूल ने प्रेम कहानी लिख दी&
 
Comments


Login

You are Visitor Number : 294