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Abdul Ahad Saz
 
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* मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना *

मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना

छोटी छोटी बातों में दिलचस्पी लेना

जज़्बों के दो घूँट अक़ीदों
[1] के दो लुक़मे [2]

आगे सोच का सेहरा [3] है, कुछ खा-पी लेना

नर्म नज़र से छूना मंज़र की सख़्ती को

तुन्द हवा से चेहरे की शादाबी [4] लेना

आवाज़ों के शहर से बाबा ! क्या मिलना है

अपने अपने हिस्से की ख़ामोशी लेना

महंगे सस्ते दाम , हज़ारों नाम थे जीवन

सोच समझ कर चीज़ कोई अच्छी सी लेना

दिल पर सौ राहें खोलीं इनकार ने जिसके

‘साज़’ अब उस का नाम तशक्कुर [5] से ही लेना

शब्दार्थ:

↑ श्रद्धाओं

↑ निवाले

↑ रेगिस्तान

↑ ताज़गी

↑ शुक्रिया / धन्यवाद

 
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