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Abdul Ahad Saz
 
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* ख़ुद को औरों की तवज्जुह का तमाशा न  *

ख़ुद को औरों की तवज्जुह का तमाशा न करो

आइना देख लो, अहबाब से पूछा न करो

वह जिलाएंगे तुम्हें शर्त बस इतनी है कि तुम

सिर्फ जीते रहो, जीने की तमन्ना न करो

जाने कब कोई हवा आ के गिरा दे इन को

पंछियो ! टूटती शाख़ों पे बसेरा न करो

आगही बंद नहीं चंद कुतुब-ख़ानों में

राह चलते हुए लोगों से भी याराना करो

चारागर! छोड़ भी दो अपने मरज़ पर हम को

तुम को अच्छा जो न करना है, तो अच्छा न करो

शेर अच्छे भी कहो, सच भी कहो, कम भी कहो

दर्द की दौलते-नायाब को रुसवा न करो

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