एक और मैं
कहीं ना कहीं एक और मैं हूँ,
चाहे इस जहाँ में या उस जहाँ में,
या सितारों के बीच किसी तीसरे जहाँ में,
अनछुए अंधेरो में या जलते उजालों में,
आशा में निराशा में,
खुशी में या गम में,
कहीं ना कहीं एक और मैं हूँ ।
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आज तक मैंने नहीं देखा है उसे,
बस देखा है अपने आप को आइने में,
कहीं दूर खड़ा वो मुझे पुकार रहा है प्यार से,
पर आज तक नहीं मिल पाया हूँ अपने आप से,
कभी ना कभी कहीं ना कहीं राह चलते,
उससे मुलाकात ज़रुर होगी,
क्योंकि मैं जानता हूँ कि,
कहीं ना कहीं एक और मैं हूँ
पता नहीं मै हूँ भी के नहीं
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