* अपने आप को देख रहा हूँ हैरानी-हैरा *
अपने आप को देख रहा हूँ हैरानी-हैरानी से
वरना और तअल्लुक़् क्या है मेरा बहते पानी से
एक ज़रा-सी बात थी लेलिन तरह-तरह के पेच पड़े
कितने काम आसान हुए हैं और कितनी आसानी से
रात बहुत दिन बाद आए हैं दिल के टुकड़े आँखों में
रात बहुत दिन बाद मिले हैं ये अंगारे पानी से
कब-तक अपना-आप सँभालें, कब तक ज़ब्त की ख़ू डालें
दिल की बात निकल जाती है आँखों की नादानी से
एक ही मंज़र देख रहा हूं इस बेअंत ख़राबे में
एक ही सूरत झांक रही है सदियों की वीरानी से
हमने भी हरचंद भरा है स्वाँग इस खेल-तमाशे में
रब्त नहीं खुलता अपना कुछ इस बेरब्त कहानी से
*************** |