donateplease
newsletter
newsletter
rishta online logo
rosemine
Bazme Adab
Google   Site  
Bookmark and Share 
design_poetry
Share on Facebook
 
Ahsaan Bin Danish
 
Share to Aalmi Urdu Ghar
* यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे *
यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे 
साथ चल मौज़-ए-सबा हो जैसे 

लोग यूँ देख कर हँस देते हैं 
तू मुझे भूल गया हो जैसे 

इश्क़ को शिर्क की हद तक न बड़ा 
यूँ न मिल हमसे ख़ुदा हो जैसे 

मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ 
मुझपे एहसान किया हो जैसे 

ऐसे अंजान बने बैठे हो 
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे 

हिचकियाँ रात को आती ही रहीं 
तू ने फिर याद किया हो जैसे 

ज़िन्दगी बीत रही है "दानिश" 
एक बेजुर्म सज़ा हो जैसे
****
 
Comments


Login

You are Visitor Number : 311