अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है