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Akhtar Nazmi
 
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* लिखा है..... मुझको भी लिखना पड़ा है *
लिखा है..... मुझको भी लिखना पड़ा है
जहाँ से हाशिया छोड़ा गया है

अगर मानूस है तुम से परिंदा
तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है

कहीं कुछ है... कहीं कुछ है... कहीं कुछ
मेरा सामन सब बिखरा हुआ है

मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है 

क़यामत देखिए मेरी नज़र से 
सवा नेज़े पे सूरज आ गया है

शजर जाने कहाँ जाकर लगेगा
जिसे दरिया बहा कर ले गया है 

अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने
ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है

बहुत रोका है "नाज़्मी" पत्थरों ने
मगर पानी को रास्ता मिल गया है
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