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Akhtar ul Iman
 
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* काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा *
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा

बायस-ए-रश्क़ है तन्हा रवी-ए-रहरौ-ए-शौक़
हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा

हम ने दुनिया की हर इक शै से उठाया दिल को
लेकिन इक शोख के हंगामा-ए-महफ़िल के सिवा

तेग़ मुन्सिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद
बेगुनाह कौन है उस शहर मे क़ातिल के सिवा

ज़ाने किस रंग से आई है गुलशन में बहार
कोई नग़मा ही नही शोर-ए-सिलासिल के सिवा
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