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Ameer Minai
 
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* बन्दा-नवाज़ियों पे ख़ुदा-ए-करीम थì *
बन्दा-नवाज़ियों पे ख़ुदा-ए-करीम था 
करता न मैं गुनाह तो गुनाह-ए-अज़ीम था 

बातें भी की ख़ुदा ने दिखाया जमाल भी 
वल्लाह क्या नसीब जनाब-ए-कलीम था 

दुनिया का हाल अहल-ए-अदम है ये मुख़्तसर
इक दो क़दम का कूच-ए-उम्मीद-ओ-बीम था 

करता मैं दर्दमन्द तबीबों से क्या रजू 
जिस ने दिया था दर्द बड़ा वो हक़ीम था 

समाँ-ए-उफ़्व क्या मैं कहूँ मुख़्तसर है ये 
बन्दा गुनाहगार था ख़ालिक़ करीम था 

जिस दिन से मैं चमन में हुआ ख़्वाहे-ए-गुल 'आमीर' 
नाम-ए-सबा कहीं न निशान-ए-नसीम था
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