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* घटाटोप अमावस मे , जब दीप प्रेम के जल *
घटाटोप अमावस मे , जब दीप प्रेम के जलते हैं।
ऊर मे नयी दिवाली होती,गीत नये तब पलते हैं॥
हर तरफ़ अंधेरा ही तो नही,पलकें ज़रा उठाओ तुम,
भोर हो रहा देख उधर , अभी अरूण निकलते हैं॥
मत पूछ कितने शूलों से, किसने हृदय को वेधा है?
पूछ कौन से पुष्प भाव के,मुझे मरहम से लगते हैं॥
किस-किस धारा को रोकोगे,मन हुआ हिमालय मेरा है।
मालूम नही है तुम्हे,वहां से कितने सोते बहते हैं॥
थककर चूर हुए क्यों तुम,मंज़िल एक कदम भर है।
हार न मानो , युग जीतोगे,लोग यहि तो कहते हैं॥
अपनी भली कही तुमने,क्या औरों की भी सुनी कभी?
मुस्काते दिखते जो चेहरे, अंदर कितने दुख सहते हैं॥
छोड़ो इनकी उनकी बातें,दृष्टि उधर तुम करो‘सुलभ’,
हाथ-पसारे , नज़रें-बिछाये , तेरे लिये जो रहते हैं॥ |
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