आफ़त में पडे़ दर्द के इज़हार से हम और। याद आ गये भूले हुए कुछ उसको सितम और॥ हम ‘आरज़ू’ इस शान से पहुँचे सरेमंज़िल। ख़ुद लग़्ज़िशेपा ले गई दो-चार क़दम और॥ ****