साथ हर हिचकी के लब पर उनका नाम आया तो क्या? जो समझ ही में न आये वो पयाम आया तो क्या? मय से हूँ महरूप अब भी, जो शरीके-दौर हूँ। पाए साक़ी से जो ठोकर खाके जाम आया तो क्या? ***