रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से। चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी पुकार के॥ पूछी थी छेड़कर जो बात, कहने न दी वो बात भी। तुमने खटकती फ़ाँस को छोड़ दिया उभार के॥ ****