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Asghar Gondvi
 
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* ये मुझ से पूछिए क्या जूस्तजू में ल *
ये मुझ से पूछिए क्या जूस्तजू में लज़्ज़त है 
फ़ज़ा-ए-दहर में तहलियल हो गया हूँ मैं 

हटाके शीशा-ओ-सागर हुज़ूम-ए-मस्ती में 
तमाम अरसा-ए-आलम पे छा गया हूँ मैं

उड़ा हूँ जब तो फलक पे लिया है दम जा कर 
ज़मीं को तोड़ गया हूँ जो रह गया हूँ मैं

रही है खाक के ज़र्रों में भी चमक मेरी 
कभी कभी तो सितारों में मिल गया हूँ मैं 

समा गये मेरी नज़रों में छा गये दिल पर 
ख़याल करता हूँ उन को कि देखता हूँ मैं
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