* ज़माना मुझ पे अगर ऐतबार कर लेता *
ज़माना मुझ पे अगर ऐतबार कर लेता
मैं आंसुओं का समंदर भी पर कर लेता
बस एक लम्हे में दुनिया बदलने वाली थी
अगर वो मेरा ज़रा इंतिज़ार कर लेता
बचाये रहती है शा इस्तागी यहाँ वरना
गुरूर कब का हमारा शिकार कर लेता
तुम्हारे शहर में गर इक दुकान मिल जाती
मैं खुशबुओं का वहां कारोबार कर लेता
हुनर बताते अगर उसके ऐब को हम भी
तो दोस्तों में हमें भी शुमार कर लेता
**** |