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Jawaid Hayat
 
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* हर किसी में यहाँ बस जाने का दम थोड़ *
हर किसी में यहाँ बस जाने का दम थोड़ी है !
यह मिरा दिल कोई ज़ाहिद का हरम थोड़ी है !!

ज़ीस्त है दश्त ए बयाबाँ भी कभी सैहरा भी !
यह तिरी भीगी हुई ज़ुल्फ़ का ख़म थोड़ी है !!

वह तो अच्छा है मगर रस्मे मुहब्बत है बुरी !
उसकी आदत के सबब उसका सितम थोड़ी है !!

मुस्कुराकर है ग़म-ए-दिल को छुपाना मुश्किल !
यह तजरिबा मिरा, मैयकश का भरम थोड़ी है !!

है मिरा चाक-ए-गिरेबाँ तिरी उलफ़त का निशाँ !
वर्ना सर पर मिरे इफ़लास का ग़म थोड़ी है !!

लब पे मैं ज़िक्र सितमगर तिरा लाता ही नहीं !
मसलहत है यह मिरी, तरज़-ए- करम थोड़ी है !!

तेरी उलफ़त में बहाया है पसीना बरसों !
पैरहन यह मिरा बरसात से नम थोड़ी है !!

जो भी लिखता है छुपा लेता है दीवारों में !
यह मेरा दिल किसी शायर का क़लम थोड़ी है !!

इश्क़ में मुझ को भटकने से बचाता है "हया॔त" !
मिरा रहबर है वह, पत्थर का सनम थोड़ी है !!
 
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