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Jawaid Hayat
 
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* देख कर आईने में अपना शराबी चेहरा *
ग़ज़ल

देख कर आईने में अपना शराबी चेहरा
हम को याद आ गया साक़ी का हिजाबी चेहरा
जाम को जाम से टकरा के पिलाई उसने
सब ने पी ख़ूब मगर हम ने, गुलाबी चेहरा
हम ने पूछा के बता नाम, वो बोला "साक़ी"
सब थे हैरान के है ख़ूब, जवाबी चेहरा
मुझ को शक है के शराबी न थे सब मेरी तरह
हर तरफ़ मुझ को नज़र आया नक़ाबी चेहरा
दिल गिरफ़्ताह सा नज़र बहकी बदन बे जाँ सा
करके मिस्मार गया मुझ को वो ख़ुआबी चेहरा
अब सबक़ दूसरा पढ़ने की ज़रूरत न रही
पढ़ लिया हम ने हयात उसका किताबी चेहरा

*गिरफ़्ताह = उदास, बेचैन 
*मिस्मार = तोड़ फोड़ कर

जावेद हया॔त
 
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