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Jawaid Hayat
 
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* यह तेरी ख़न्दा-लबी तीरे-नज़र से पह *
यह तेरी ख़न्दा-लबी तीरे-नज़र से पहले
बारिशें होती हैं क्या रक्से-शरर से पहले ?
मुझ को वह क़त्ल करे है तो मेरी रूह का क्या
बान्ध ले दिल का निशाना मेरे सर से पहले
इश्क़ बेचैन मेरा हुस्न तेरा लापरवाह
दिल का क्या हाल करूँ ख़ूने-जिगर से पहले
मैं सनम अपनी नज़र कैसे बचाता तुझ से
राह में घर है तेरा भी मेरे घर से पहले
ताब नज़रों की तेरी अब मैं उठा लेता हूँ
दिल मेरे दिल से मिला अब के से पहले
होश गुम हों तो कहाँ मुझ से तकल्लुफ़ होगा
मुझ को आँखों की पिला देना ज़हर से पहले
ज़ख़्म देता है मुहब्बत का नया पोधा भी
ख़ार ही इसमें निकलते हैं शजर से पहले
ऐ हवा कर न अन्धेरा न चराग़ों को बुझा
अश्क पीने हैं अभी मुझको सैहर से पहले
दूर मन्ज़िल तो हया॔त इश्क़ की न थी मुझसे
रास्ता भूल गया था मैं सफ़र से पहले
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