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Jawaid Hayat
 
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* दिल की हसरत, ख़ुआबो-अरमाँ सब मेरे क *
ग़ज़ल

दिल की हसरत, ख़ुआबो-अरमाँ सब मेरे क़ातिल हुए
सहन ए दिल से जब निकल कर आँख में दाख़िल हुए
हुस्न की जब इश्क़ से मेरे, शनासाई बढ़ी
यार जितने थे हरीफ़ों मे मेरे शामिल हुए
आज है नज़रे-करम मुझ पर तेरी कल हो न हो
वक़्त की गरदिश में कितने ताजवर साइल हुए
संगे – राहे – इश्क़ तो क़दमों को न लरज़ा सके
तेरे अफ़साने ही मेरी राह में हाइल हुए
ज़िक्र तेरा ही सरे – फ़हरिस्त महफ़िल में रहा
तज़करे अहले – सितम के जो सरे – महफ़िल हुए
अज़मते – ग़म ओर कुछ बढ़ती गयी दिल में हया॔त
ज़िन्दगी में जिस क़दर भी ग़म मुझे हासिल हुए

जावेद "हयात
 
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