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Jawaid Hayat
 
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* अहदे वफ़ा के बाद फिर आराम न मिला *
अहदे वफ़ा के बाद फिर आराम न मिला
सुबह को गर मिला तो सरे शाम न मिला
तिशना लबी को अश्क भी आँखों से न मिले
साक़ी की बज़्म में भी कोई जाम न मिला
अहदे वफ़ा को सब ने दिया ख़ुदकुशी का नाम
क़ातिल को मेरे क़त्ल का इल्ज़ाम न मिला
उसकी नज़र के तीर से बचकर गया है कौन
है कौन जिसे मौत का पैग़ाम न मिला
मशहूर हुए और सितम करके सितमगर
अहले जुनूँ को ज़र्फ़ का इनआम न मिला
रुसवा किया मुझे ही फ़क़त उसने बज़्म में
महफ़िल में कोई दूसरा बदनाम न मिला
उल्फ़त में मेरी मौत को समझा वो इन्तेहा
मिट्टी को मेरा जिस्म मिला नाम न मिला
बाँटे हया॔त फूल मुहब्बत के हर तरफ़
बस इस के सिवा ओर हमें काम न मिला

जावेद हयात
 
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