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Jawaid Hayat
 
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* है मुझसे ही डरता हुआ किरदार मिरे प *
है मुझसे ही डरता हुआ किरदार मिरे पास !
यूँ तो कोई ख़ंजर है न तलवार मिरे पास !!
मसरूफ़ हमेशा ही संभलने में रह गया  !
कुछ ग़म की ज़्यादा रही मिक़दार मिरे पास !!
मंज़िल का पता रास्ते देते हैं मुझे ख़ुद !
मेरे जुनूँ की देखके रफ़तार मिरे पास !!
मैं अपनी नदामत को नुमायाँ नही करता !
सीने में कई दफ़्न हैं आज़ार मिरे पास !!
जो रंज-ओ-अलम रंग-ओ-बू के साथ बदल जाऐं !
ऐसे हैं कई बज़्म में किरदार मिरे पास !!
तुम आओ तो पल्कों पे तुम्हें अपनी बिठाऊँ !
इतना है अभी जज़्बा-ए-ईसार मिरे पास !!
मैं इसको छुपाता हूँ कि इस दर्द ने मिरे !
रक्खा है छुपाकर दिल-ए-अफ़गार मिरे पास !!
मैं अहदे-गुज़िश्ता की नुमाइश नहीं करता !
बीते हुए लम्हों का है अंबार मिरे पास !!
बस तेरी पनाहों में ख़ुदा, ख़ुद को दिया है !
रहता है बड़ा कोई गुनेहगार मिरे पास !!
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