मर के भी कब तक निगाहे-शौक़ को रुस्वा करें ज़िन्दगी तुझको कहाँ फेंक आएँ आख़िर क्या करें ज़ख़्मे-दिल मुम्किन नहीं तो चश्मे-दिल ही वा करें वो हमें देखें न देखें हम उन्हें देखा करें ****