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Kaifi Azmi
 
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* शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा, *
शोर यूँ ही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा ।

बानी-ए-जश्ने-बहाराँ ने ये सोचा भी नहीं
किस ने काटों को लहू अपना पिलाया होगा ।

अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे,
ये सराब उन को समंदर नज़र आया होगा ।

बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी,
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा ।
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