बात सच्ची हो तो चाहे जिस ज़बा मे बोलिये, फर्क मतलब पर नहीं पड़ता है ख़ालिक़ कि क़सम । "माँ के पैरो मे है जन्नत" क़ौल है मासूम का, मै मुसल्ले पर भी कह सकता हुं “वन्दे मातरम” ।। --”काज़िम” जरवली