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Khalil ur Rahman Azmi
 
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* तेरी सदा का है सदियों से इंतज़ार म *
तेरी सदा का है सदियों से इंतज़ार मुझे 
मेरे लहू के समुन्दर जरा पुकार मुझे 

मैं अपने घर को बुलंदी पे चढ़ के क्या देखूं 
उरूज-ए-फ़न मेरी दहलीज़ पर उतार मुझे 

उबलते देखी है सूरज से मैंने तारीकी 
न रास आएगी ये सुब्ह-ए-ज़रनिगार मुझे 

कहेगा दिल तो मैं पत्थर के पाँव चूमूंगा
ज़माना लाख करे आ के संगसार मुझे 

वो फाकामस्त हूँ जिस राह से गुज़रता हूँ 
सलाम करता है आशोब-ए-रोज़गार मुझे
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