* कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढ *
कभी शेर-ओ-नगमा बनके कभी आँसूओ में ढलके
वो मुझे मिले तो लेकिन, मिले सूरते बदलके
कि वफा की सख़्त राहे कि तुम्हारे पाव नाज़ुक
न लो इंतकाम मुझसे मेरे साथ-साथ चलके
न तो होश से ताल्लुक न जूनू से आशनाई
ये कहाँ पहुँच गये हम तेरी बज़्म से निकलके
**** |