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Khumar Barabankvi
 
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* मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गय&# *
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया 
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया 

कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर 
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया 

वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं 
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया 

बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई 
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया 

मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम 
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया 

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
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