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* अकेला छोड़ गया मुझ को काफिला मेरा, *
ग़ज़ल
अकेला छोड़ गया मुझ को काफिला मेरा,
सफ़र में साथ रहा सिर्फ हौसला मेरा.
न जाने कितने मसाइल ने उसको घेर लिए,
वोह जिस के सामने पहुंचा है मसअला मेरा.
वह रूबरू भी रहा महवे गुफ्तगू भी रहा,
ज़रा भी कम न हुआ उस से फासला मेरा.
मैं कोई सुब्ह का अखबार तो नहीं यारो,
यहीं प ख़त्म न होगा मुआमला मेरा.
गरीबे शहर हूँ लेंकिन यह मस्त |
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